BPAG-171- आपदा प्रबंधन ( Aapda Prabandhan ) || Disaster Management in hindi- Most important question answer

bpag- 171- disaster management in hindi- most important question answer.

  ( परिचय )

प्रिय विद्यार्थियों इस वाले Article में हम आपको बताने वाले हैं BPAG-171- आपदा प्रबंधन ( Aapda Prabandhan )  इसमें आपको सभी Disaster Management in hindi-  Most important question answer  देखने को मिलेंगे इन Question- answer को हमने बहुत सारे Previous year के  Question- paper का Solution करके आपके सामने रखा है  जो कि बार-बार Repeat होते हैं, आपके आने वाले Exam में इन प्रश्न की आने की संभावना हो सकती है  इसलिए आपके Exam की तैयारी के लिए यह प्रश्न उत्तर अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध होंगे। आपको आने वाले समय में इन प्रश्न उत्तर से संबंधित Video भी देखने को मिलेगी हमारे youtube चैनल Eklavya ignou पर, आप चाहे तो उसे भी देख सकते हैं बेहतर तैयारी के लिए

bpag- 171- disaster management in hindi- most important question answer

1. 'आपदा' को परिभाषित कीजिए तथा प्राकृतिक आपदाओं के विभिन्न प्रकारों की चर्चा कीजिए ।

Answer

आपदा को मूल फ्रेंच शब्द Disaster से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है बुरा स्टार वर्तमान समय में आपदा शब्द का प्रयोग प्राकृतिक और मानव घटनाओं को माना जाता है जिसके द्वारा किसी भी क्षेत्र में बहुत ज्यादा नुकसान होता है

( 2005 के आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार )

आपदा का अर्थ होता है " कृषि क्षेत्र में मानव या प्राकृतिक कारणों से पैदा हुई तबाही या दुर्घटना जिसकी वजह से मानव जीवन और पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ हो ।

( 2009 में अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस के अनुसार )

आपदा अचानक से घटित हुई एक ऐसी घटना है जो भयंकर रूप से समाज की कार्यप्रणाली का नाश कर देती है तथा सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय नुकसान पहुंचाती है।

( प्राकृतिक आपदाएं )

  1. भूकंप
  2. ज्वालामुखी विस्फोट
  3. भूस्खलन
  4. सुनामी
  5. हिमस्खलन
  6. बाढ़
  7. सूखा
  8. महामारी 

1- भूकंप

भूकंप जैसा कि हम सभी इसके बारे में जानते हैं इससे काफी तबाही होती है
पृथ्वी की आंतरिक प्लेटों के टूटने के कारण भूकंप पैदा होता है और पृथ्वी की ऊपरी सतह पर दरार के कारण भूमि पर इमारतें गिर जाती है
इससे ऊपरी परत पर रहने वाले लोगों को काफी हानि होती है 
रिक्टर स्केल पर भूकंप का प्रभाव 6 या इससे अधिक स्तर पर अगर होता है तो इसे काफी भयानक माना जाता है  इससे काफी ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है

2- ज्वालामुखी विस्फोट

ज्वालामुखी विस्फोट के बारे में भी आपने सुना होगा यह पहले के समय ज्यादा आते थे हमने इसे कार्टून और मूवीस में भी फटते हुए देखा है
ज्वालामुखी का लावा 10 किलोमीटर से 90 किलोमीटर तक फेल जाता था , जब यह फटता था

3- भूस्खलन

भूस्खलन से भी काफी नुकसान होता है क्योंकि इसमें मृदा के खिसकने के कारण चट्टान नीचे गिरने लगती है 
यह तब होता है जब तेज वर्षा या भूकंप आता है 
इसका अनुमान लगाना भी अत्यधिक कठिन है

 4- सुनामी

आपने सुनामी के बारे में भी सुना होगा यह हमेशा समुंद्र में आता है
इन समुद्री तरंगों की तीव्रता 100 किलोमीटर या उससे अधिक हो सकती हैं
भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार सुनामी का प्रभाव अलग- अलग हो सकता है
सुनामी भी कई कारणों की वजह से आ सकते हैं जैसे कि भूकंप, जल विस्थापन आदि ।
सुनामी आने की वजह से इसके नजदीक वाली सारी जगह तबाह हो जाती है और वहां पर मानव जाति को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचता है।

5- हिमस्खलन

पर्वतों से गिरने वाली बर्फ को हिमस्खलन कहा जाता है
पर्वतों से चट्टानों और मिट्टी के मिश्रण खिसकने लगते हैं और जब वह नीचे गिरते हैं तब हम उसे हिमस्खलन कहते हैं
इनका भी मुख्य कारण ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप होते हैं

6- बाढ़ 

बाढ़ आने की वजह से भी कई इलाकों में बहुत ज्यादा नुकसान होता है
जलाशयों, नदियों और तटीय बांधों के टूटने के कारण ही बाढ़ आती है
बांध के टूटने की वजह से भी उसके नजदीक इलाकों में पानी भर जाता है जिससे कि वहां के रहने वाले लोगों को काफी नुकसान होता है 
बाढ़ आने के मुख्य कारण है अत्यधिक वर्षा का होना, तीव्र हवाएं और तूफानी लहरें।

7- सुखा

सूखे की वजह से भी मानव जाति को अत्यधिक नुकसान होता है
निरंतर पानी की कमी की वजह से सूखा पड़ता है इसके कारण है अपर्याप्त जल प्रबंधन, तकनीको और लापरवाही के कारण
सूखे के कारण मानव जीवन और पर्यावरण पर विनाशकारी प्रभाव पड़ते हैं। 

8- महामारी

महामारी के अंतर्गत संक्रमण असामान्य रूप से फैलता है
महामारी का शिकार मानव, जानवर, पक्षी हो सकते हैं
महामारी के भी कई रूप है जैसे कि मलेरिया, हैजा, त्वचा रोग इत्यादि


2- मानव-निर्मित आपदाओं के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए।

Answer

( मानव निर्मित आपदाएं )

मानव निर्मित आपदाएं वह आपदाएं होती है जो मनुष्य द्वारा निर्मित आपदाएं होती है 
जैसे कि मनुष्य की लापरवाही की वजह से कोई आपदाएं पैदा हुई हो या फिर मनुष्य ने किसी खतरनाक उपकरण का गलत तरीके से इस्तेमाल किया हो उसकी वजह से मानव निर्मित आपदाएं पैदा हुई हो 
उदाहरण के लिए सड़क दुर्घटना है, रेल दुर्घटनाएं, वायु दुर्घटनाएं इन सभी दुर्घटनाओं को मानव निर्मित आपदाएं कहते हैं।

मानव निर्मित आपदाओं की वजह से भी बहुत ज्यादा नुकसान होता है इस श्रेणी में में हम मानव द्वारा निर्मित आपदाओं को रखते हैं जैसे कि 
1- अकाल
2- विस्थापित आबादी
3- यातायात दुर्घटनाएं
4- औद्योगिक दुर्घटनाएं
5- आग से होने वाली दुर्घटनाएं

1- अकाल

खाने पीने की वस्तुओं की कमी और सूखा अकाल आपदा को उत्पन्न करती है
अकाल एक गंभीर समस्या है इसलिए लोगों को विस्थापित होना पड़ता है अकाल की वजह से कुपोषण और लोगों में रोग पैदा होते हैं।

2- विस्थापित आबादी

विस्थापित आपदा में लोग अपने निवास स्थान को छोड़कर दूसरे निवास स्थान पर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं
जैसे कि भूकंप, बाढ़ के समय लोगों को ऐसा करना पड़ता है
विस्थापित आपदा का कारण है प्राकृतिक आपदा या सैन्य संघर्ष

3- यातायात दुर्घटना

यातायात दुर्घटना जैसे कि हमें नाम से ही पता चल रहा है इसके अंतर्गत यातायात करते समय होने वाली दुर्घटना से लोगों को नुकसान पहुंचना है
जैसे कि हवाई जहाज, नाव, रेल जैसे साधनों से होने वाली दुर्घटना
Note- इन्हें आप सड़क दुर्घटनाएं, रेल दुर्घटना और वायु दुर्घटना के नाम से भी heading बना करके लिख सकते हो।

4- औद्योगिक दुर्घटनाएं 

औद्योगिक दुर्घटना से अभिप्राय उद्योग में होने वाली किसी प्रकार की दुर्घटना जैसे रासायनिक या प्रमाणिक विस्फोट औद्योगिक दुर्घटना में शामिल है
इसके अंदर उद्योग के पदार्थों का रिसाव, पर्यावरण प्रदूषण, लापरवाही, विस्फोट जैसी दुर्घटनाएं शामिल है

5- आग से होने वाली दुर्घटनाएं

आग लगने की वजह से भी अत्याधिक भयानक नुकसान होता है जिसमें बड़े पैमाने पर जान और संपत्ति का नुकसान होता है
जिसके कारण लाखों लोग मरते हैं और करोड़ों की संपत्ति खत्म हो सकती है
वनों में आग लगने की वजह से बहुत सारे पेड़ पौधे और जंगली जानवरों को नुकसान पहुंचता है।


3- 'आपदा तैयारी बहत महत्वपूर्ण है।' चर्चा कीजिए।

Answer

आपदा आने से पहले की गई तैयारी और उपाय को आपदा तैयारी कहा जाता है
आपदा तैयारी वास्तव में व्यक्तियों, समुदायों और सरकारों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है।
इसमें प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिए सक्रिय उपाय करना, लोगों की सुरक्षा और भलाई करना शामिल है
यहाँ कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं कि आपदा की तैयारी क्यों महत्वपूर्ण है:

1- ( लोगों की जान बचाना )

आपदा तैयारी का प्राथमिक उद्देश्य लोगों की जान बचाना है।
पूर्व चेतावनी प्रणाली, निकासी योजना, और उचित बुनियादी ढांचा जीवन के नुकसान को काफी हद तक कम कर सकते हैं।

2- ( नुकसान को कम करना )

आपदाएं बुनियादी ढांचे, घरों, व्यवसायों और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं।
तैयारी के उपाय, जैसे भूकंप का सामना करने के लिए भवनों का निर्माण, बाढ़ नियंत्रण प्रणाली को लागू करना, और आग प्रतिरोधी रणनीतियों को विकसित करना, नुकसान की सीमा को कम करने और आर्थिक नुकसान को सीमित करने में मदद करते हैं।

3- ( संभावित खतरों के बारे में शिक्षित करना )

आपदा तैयारी समुदायों और व्यक्तियों के भीतर लचीलापन बनाती है।
इसमें लोगों को संभावित खतरों के बारे में शिक्षित करना, आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रक्रियाओं में उन्हें प्रशिक्षित करना और तैयारियों की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल है।
ऐसा करने से, समुदाय आपदाओं से निपटने और उबरने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हो जाते हैं, जिससे दीर्घकालिक प्रभाव कम हो जाते हैं।

4- ( Healthcare system पर बोझ कम करना )

प्राकृतिक आपदाएं और आपात स्थिति स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली, भारी अस्पतालों और चिकित्सा सुविधाओं को प्रभावित कर सकती हैं।
तैयारी के उपाय, जैसे चिकित्सा वृद्धि क्षमता स्थापित करना, चिकित्सा आपूर्ति का भंडारण करना, स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मांग में वृद्धि को बेहतर ढंग से संभालने और जरूरतमंद लोगों को समय पर देखभाल प्रदान करने में सक्षम बनाता है।


4- आपदा को परिभाषित कीजिए तथा प्राकृतिक एवं मानव- निर्मित आपदाओं के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए
Answer

  • आपदाएं बहुत पुराने समय से ही मानव के इतिहास का महत्वपूर्ण भाग रही है
  • मानव ने प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया है
  • मानव द्वारा निर्मित आपदाएं भी दुर्घटना के रूप में मानव के जीवन का अंग रही है
  • प्राकृतिक आपदाएं मानव के साथ- साथ प्राकृतिक वातावरण को भी बुरी तरह प्रभावित करती है
  • आपदा एक ऐसी घटना या घटनाओं की एक श्रृंखला है जिसकी वजह से बहुत ज्यादा नुकसान होता है और जनजीवन प्रभावित होता है
  • इसकी वजह से समाज के बहुत सारे कार्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • प्राकृतिक आपदाएँ ऐसी घटनाएँ हैं जो मुख्य रूप से प्राकृतिक क्रियाओं और घटनाओं के कारण होती हैं।
  • वे पृथ्वी की गतिशील शक्तियों से उत्पन्न होते हैं और इसमें मानव प्रत्यक्ष रूप से शामिल नहीं होते
  • प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरणों में भूकंप, तूफान, बवंडर, बाढ़, सूखा, जंगल की आग, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट और हिमस्खलन शामिल हैं।
  • कुछ प्राकृतिक आपदाओं की एक निश्चित सीमा तक भविष्यवाणी या अनुमान लगाया जा सकता है, उनका समय, तीव्रता और सटीक स्थान अक्सर अप्रत्याशित रहता है।
  • उदाहरण के लिए, भूकंप, पृथ्वी की पपड़ी में अचानक ऊर्जा के निकलने के कारण होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जमीन हिलती है ।
  • तूफान और बवंडर वायुमंडलीय घटनाएं हैं जो विशिष्ट मौसम की स्थिति से उत्पन्न होती हैं, जिससे शक्तिशाली हवाएं, भारी वर्षा और तूफान बढ़ जाते हैं।
  • बाढ़ तब आती है जब पानी नदी चैनलों या जल निकासी प्रणालियों की क्षमता से अधिक हो जाता है, अक्सर अत्यधिक वर्षा या बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण।
  • सूखा असामान्य रूप से कम वर्षा की लंबी अवधि है जो पानी की कमी, फसल की विफलता और पारिस्थितिकी तंत्र के विघटन का कारण बन सकती है।
  • मानव निर्मित आपदाएँ, जिन्हें तकनीकी या मानवजनित आपदाएँ भी कहा जाता है, मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों या मानव निर्मित प्रणालियों की विफलता के कारण होती हैं।
  • वे दुर्घटनाओं, लापरवाही, अपर्याप्त सुरक्षा उपायों, जानबूझकर किए गए कार्यों, संघर्षों या तकनीकी विफलताओं के परिणामस्वरूप हो सकते हैं।
  • मानव निर्मित आपदाओं के उदाहरणों में औद्योगिक दुर्घटनाएँ शामिल हैं, परमाणु दुर्घटनाएँ, परिवहन दुर्घटनाएँ, जैसे विमान दुर्घटनाएँ या ट्रेन का पटरी से उतरना; आतंकवादी हमले, नागरिक अशांति, युद्ध, और मानवीय गतिविधियों, जैसे वनों की कटाई या प्रदूषण के कारण होने वाली पारिस्थितिक क्षति।


5- विभिन्न प्रकार के आपदा तैयारी तरीकों की व्याख्या कीजिए
Answer

आपदा तैयारी के तीन प्रकार होते हैं

तैयारी के तीन प्रकार हैं। लक्ष्य- मूलक तैयारी, कार्य- मूलक तैयारी और आपदा- मूलक तैयारी।

1- लक्ष्य- मूलक तैयारी-

इसमें तैयारी करने की योजना में विशेष लक्ष्य तय किये जाते हैं, जैसे कि वर्गों पर ध्यान देना, पशुओं, स्वास्थ्य, सामुदायिक आधारित योजना आदि।
इनकी चर्चा निम्नलिखित है-

पशुधन तैयारी योजना-
इस तैयारी के अंतर्गत पशुधन के खतरों को शामिल किया गया है, जैसे कि पशु रोग विशेषज्ञ कर्मचारी, दवाईयाँ, पशु रोग अस्पताल और समुदायों में पशुधन की जागरूकता, पुनरुत्थान, पुनर्वास और संसाधनों का मूल्यांकन।

संयुक्त दीर्घकालीन स्वास्थ्य तैयारी योजना - 
इस तैयारी के अंतर्गत चिकित्सा और स्वास्थ्य संबंधी संयुक्त कार्य योजना बनाई जाती है। इसमें शामिल हैं- समुदाय की रूपरेखा, कार्य योजना, परीक्षणा योजना, योजना का मूल्यांकन और संशोधन के साथ संयोजन।

सामुदायिक आधारित आपदा प्रबंध योजना- 
इस तैयारी में लोगों के जीवन, पशुधन, संपत्तियों की रक्षा करना आदि। 
सामुदायिक रूप से शामिल हैं- संसाधनों का विश्लेषण, चेतावनी, आश्रमों का निर्माण, समुदाय की स्वयं सहायता क्षमता, खतरे का आंकलन और संवेदनशीलता का मूल्यांकन, आपदा प्रबंधन समितियों और संगठनों की स्थापना तथा विपदा निर्माण आदि।

समन्वयन योजना- 
इस तैयारी में सरकारी और गैर-सरकारी संस्थान सहयोग करते हैं; जैसे कि केंद्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर समन्वयन।

2- कार्य- मूलक तैयारी

कार्य-मूलक तैयारी में शामिल तत्व हैं- मैपिंग, योजना, बल निर्माण, कार्य बल, प्रशिक्षण, तंत्र, जागरूकता, प्रचालनकरण, कर्मिकों की भर्ती।
इसमें शामिल हैं- प्रशासनिक और नियामक योजना, बीमा योजना, सूचना, शिक्षा, प्रशिक्षण, सामुदायिक कार्य समूह, चेतावनी व्यवस्था, प्रोत्साहन और सार्वजनिक जागरूकता।

3- आपदा- मूलक तैयारी।

आपदा- मूलक में आपदा के प्रभावों को कम करने के उपाय अपनाए जाते हैं। 
आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 के अनुसार, “उपायों का उद्देश्य जोखिम प्रभाव या आपदा प्रभाव या आपदा की स्थिति की संकटपूर्ण चेतावनी को कम करना है।
इंजीनियरिंग संरचना के अंतर्गत वास्तुकार निर्माण कार्य आते हैं, जैसे कि पुलों, बाँधों, भवनों, मार्गों आदि कार्यों के लिए योजना बनाना। यह एक खर्चीली योजना है। 
गैर-इंजीनियरिंग संरचना में स्थानीय कारीगरों द्वारा कार्य करवाया जाता है; जैसे कि मिस्त्री, कारीगर, बढ़ई आदि। यह योजना कम खर्लीली है। 


6- आपदा राहत के अंतर्गत किए गए उपायों की व्याख्या कीजिए
Answer

आपदा राहत के लिए कई उपाय और कार्य किए गए हैं जो कि इस प्रकार है

निकास

आपदा राहत के उपाय के तौर पर पहला प्रयास निकासी का है, जिसमें लोगों को आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों से सुरक्षित स्थान पर ले जाया जाता है। 
निकासी के तहत सबसे पहले ठीक और उचित समय पर सही चेतावनी दी जाती है
निकासी प्रक्रिया के उपाय में कई चरण होते हैं जैसे की आवश्यकता का निर्धारण, पहले से निर्धारित दिशा, मार्ग का मूल्यांकन और निकासी रिपोर्ट आदि

खोज और बचाव

खोज और बचाव का उपाय लोगों की सुरक्षा हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण है। 
आपदा के बाद संबंधित क्षेत्र में इस प्रक्रिया को अपनाना आवश्यक हो जाता है। 
यह स्थानीय लोगों द्वारा शुरू की जाती है। 
इसके अंतर्गत आपदा में फंसे हुए अधिक-से-अधिक लोगों को बचाया जाता है। 
खोज और बचाव किट आपदा प्रभावित क्षेत्रों के केंद्रीय स्थानों पर रखने चाहिए। 
इन उपकरणों की खोज और बचाव किट में निम्न सामग्री होनी चाहिए- प्रभावित स्थान का निकासी मानचित्र, हथौड़ा, पेचकस, कुल्हाड़ी, कुदाल, फावड़ा, गैंती, रस्सी, टार्च, बैटरी सैल, जूते, हेलमेट, दस्ताने और डस्ट मास्क।

आश्रय

प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं द्वारा जन-धन संपत्ति का व्यापक रूप से विनाश होता है। 
इसमें लाखों लोग बेघर हो जाते हैं, इसलिए उन्हें आश्रय के रूप में आश्रय स्थल पर भेजा जाता है। 
आपदा पीड़ितों को आपदा के बाद की स्थिति में आश्रय स्थान पर भेजकर उन्हें बुनियादी सुविधाएँ दी जाती हैं।
लोगों को विभिन्न सामग्रियों द्वारा निर्मित किये आवास स्थल प्रदान किये जाते हैं। 
प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के लिए आवा स्थल के रूप में अलग-अलग प्रकार के तंबू उपलब्ध करवाए जाते हैं

अन्य विकल्प

आपदाओं में मनुष्यों के साथ-साथ पशुधन की भी हानि होती है। इसलिए उनके लिए चारा, साफ सफाई और पशुचिकित्सा जैसे आश्रय प्रावधान की आवश्यकता पाई जाती है
जिसमें शामिल हैं- भोजन, पानी और चारे का वितरण-सरकारी और गैर- सरकारी संस्थानों द्वारा पशुओं के लिए भोजन, पानी, चारा और दवाईयाँ प्रदान कराई जाती हैं। 
उनकी कोशिश यह सुनिश्चित करने की रहती है कि कम समय में ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को सामग्रियाँ प्रदान की जाएं।

मृतकों का निपटान

मृतक शरीरों का जल्द-से-जल्द निपटान किया जाता है, ताकि उस स्थान में रहने वाले लोगों पर मृतकों के शरीरों की दुर्गंध फैलने से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित न हो सके
मृतक शरीरों को उनके भावात्मक मूल्यों, गरिमा और सम्मान के साथ निपटान के उपाय करने चाहिए।
इसलिए पहले मृतक शरीरों की पहचान,और उनकी परंपरा के अनुसार दाह-संस्कार की व्यवस्था की जाती है। 

मृत पशुओं की व्यवस्था

आपदा से ग्रस्त क्षेत्रों में जल्दी से स्थान छोड़ने के कारण पशुधन वहीं रह जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है, इसलिए मृतक पशुओं को दफनाने की व्यवस्था की जाती है। 


7- भारतीय महासागर सुनामी 2004 के केस अध्ययन का परिश्रण कीजिए

Answer

  • भारतीय महासागर सुनामी (तमिलनाडु), 2004 बंगाल की खाड़ी में भूकंप के कारण 26 सितंबर, 2004 को भारत में भूकंप आया। 
  • इसकी रिक्टर स्केल पर तीव्रता 9.0 आंकी गई। 
  • यह भूकंप 3 घंटे बाद भारत के पूलो कुंजी ग्रेट निकोबार पर 7.5 रिक्टर स्केल आंका गया। 
  • इसमें लहरें 3 से 10 मीटर की ऊँचाई पर थीं। 
  • 20 देशों को इस प्रकोप का सामना करना पड़ा। 
  • इस विनाश में लगभग 2.2 मिलियन लोग बुरी तरह से प्रभावित हुए। 
  • सुनामी द्वारा 2260 किमी. समुद्री तटीय क्षेत्र का विनाश हुआ, जिसमें कई राज्य शामिल थे। 
  • भारत सरकार की रिर्पोट के अनुसार 12,405 लोगों की मृत्यु हुई तथा 6913 लोग घायल हुए और 64,759 लोग बेघर हुए। 1,00,000 मकान नष्ट हुए। 
  • इस सुनामी से तमिलनाडु के 13 समुद्री तटीय जिले नष्ट हुए। 
  • इसमें 6065, 828 और 617 लोग अलग-अलग क्षेत्रों में मारे गये। 
  • सुनामी बचाव और राहत कार्य में सरकारी, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों द्वारा मिलकर कार्य किया गया। 
  • सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा सुनामी के दूसरे चरण में राहत सामग्री और सहायता प्रदान की गई। 
  • राहत कार्यों में खोज, बचाव, निकासी, न्यूनीकरण की प्रक्रिया, प्रथम राहत सहायता, आश्रय, पुनर्वास, पुनर्निर्माण और पुनरुत्थान के कार्यों को सुनिश्चित किया गया। 
  • संसदीय मंत्रिमंडल समिति और इसके सचिव द्वारा राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति 2005 में स्थापित की गई। 
  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई। 
  • राष्ट्रीय आपदा आकस्मिक कोष से 112 मिलियन यूएस डॉलर के बराबर धनराशि को राहत कार्यों के लिए वितरित किया गया।
  • तमिलनाडु की राज्य सरकार द्वारा पीड़ित परिवार को 4000 रुपये की धनराशि और बाद के तीन महीनों तक 1000 रुपये की धनराशि देने की घोषणा की। 
  • सरकार द्वारा राहत सामग्री उपलब्ध कराई गई। 
  • मृतक के परिवार को केंद्र और राज्य सरकार द्वारा एक, एक लाख रुपए की धनराशि उपलब्ध कराई गई।
  • हालांकि खोज, बचाव, निकासी और राहत कार्यों में भारी क्षति के कारण बाधा उत्पन्न हुई। 
  • लोक निर्माण विभाग और स्थानीय लोगों द्वारा मलबे को साफ करने का कार्य किया गया। 
  • कृषि विशेषज्ञों द्वारा भूमि का निरीक्षण कर पूर्व स्थिति के प्रयास किये गये।
  • इसके बाद 2005 में आपदा अधिनियम और 2009 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन नीति को स्थापित किया गया।

8- महामारीयों से आप क्या समझते हैं

Answer
महामारी कम समय में बड़ी संख्या में व्यक्तियों को प्रभावित करता है महामारी की बीमारी बहुत तीव्र गति से फैलती है और गंभीर स्वास्थ्य संबंधी नुकसान पहुंचाती है इससे सामाजिक तौर पर और आर्थिक तौर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है
एक महामारी के विकास में योगदान करने वाले कारकों में रोगज़नक़ की विशेषताएं, जनसंख्या की संवेदनशीलता, संचरण का तरीका और पर्यावरणीय कारक शामिल हो सकते हैं।
एक महामारी के प्रसार को व्यक्ति-से-व्यक्ति संपर्क, दूषित पानी या खाद्य स्रोत, वायुजनित संचरण, (मच्छर जैसे कीड़ों के माध्यम से) द्वारा सुगम बनाया जाता है।
कुछ मामलों में, रोग नया हो सकता है, एक पशु जलाशय से निकलकर मनुष्यों को संक्रमित करने के लिए पार कर सकता है, जिससे विशेष रूप से तीव्र और गंभीर प्रकोप हो सकता है।
महामारी को नियंत्रित करने और कम करने के लिए उपचार रणनीतियाँ और जन जागरूकता अभियान शामिल हैं 
ताकि हाथ की स्वच्छता और सामाजिक दूरी जैसे निवारक उपायों को बढ़ावा दिया जा सके।


9- आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 में एक नया बहुत विषयक केंद्र बिंदु है।
Answer

2005 में, भारत ने आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए) लागू करके अपने आपदा प्रबंधन ढांचे को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, यह एक व्यापक कानून है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं से उत्पन्न बहुमुखी चुनौतियों का समाधान करना है। इस अधिनियम के केंद्र में एक बहु-विषयक दृष्टिकोण का समावेश है, जो आपदाओं की जटिल प्रकृति और विभिन्न क्षेत्रों में प्रयासों की आवश्यकता को पहचानता है। 


बहुविषयक दृष्टिकोण को समझना

आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के भीतर बहु-विषयक दृष्टिकोण, आपदा प्रबंधन रणनीतियों में विभिन्न क्षेत्रों, हितधारकों और विशेषज्ञों की भागीदारी का प्रतीक है। यह स्वीकार करता है कि प्रभावी आपदा प्रबंधन आपदाओं के परस्पर जुड़े सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय और तकनीकी आयामों की समग्र समझ की मांग करता है। सरकारी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर, यह अधिनियम आपदा प्रबंधन के सभी चरणों - शमन और तैयारियों से लेकर प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति तक - को संबोधित करने में सक्षम एक एकीकृत मोर्चा बनाने का प्रयास करता है।

बहुविषयक दृष्टिकोण के प्रमुख घटक

1. संस्थागत तंत्र

डीएमए राष्ट्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए), राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए), और जिला स्तर पर जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की स्थापना करता है। इन निकायों में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधि शामिल हैं, जो आपदा प्रबंधन निर्णय लेने में बहु-विषयक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करते हैं।

2. शमन और योजना:

अधिनियम विकास योजना में आपदा जोखिम में कमी और शमन उपायों के एकीकरण पर जोर देता है। यह आपदा रोकथाम के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारकों को ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबंधन योजनाओं के निर्माण को अनिवार्य बनाता है।

3. क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:

बहु-विषयक दृष्टिकोण का एक प्रमुख घटक क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों पर जोर देना है। 
ये कार्यक्रम विभिन्न हितधारकों को लक्षित करते हैं - जिनमें सरकारी अधिकारी, प्रथम उत्तरदाता, स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर और सामुदायिक नेता शामिल हैं - ताकि उन्हें आपदाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए आवश्यक कौशल से लैस किया जा सके।

4. अनुसंधान और ज्ञान साझा करना

अधिनियम आपदा प्रबंधन के लिए समर्पित अनुसंधान संस्थानों और ज्ञान केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहित करता है। यह आपदा गतिशीलता की बहु-विषयक समझ को बढ़ावा देता है, जिससे साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और नवीन समाधानों के कार्यान्वयन की अनुमति मिलती है।

5. समावेशी भागीदारी:

स्थानीय समुदायों के महत्व को पहचानते हुए, अधिनियम आपदा प्रबंधन प्रयासों में समुदाय-आधारित संगठनों और स्थानीय अधिकारियों की भागीदारी को बढ़ावा देता है। 


आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया पर प्रभाव


आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत बहु-विषयक दृष्टिकोण ने भारत की आपदा तैयारियों और प्रतिक्रिया क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है:

1. प्रभावी योजना और समन्वय:

विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को शामिल करके, अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि आपदा प्रबंधन योजनाएँ व्यापक और अच्छी तरह से समन्वित हैं। 
यह बहु-विषयक सहयोग प्रतिक्रिया रणनीतियों में अंतराल को कम करता है और आपात स्थिति के दौरान संसाधन आवंटन को अनुकूलित करता है।

2. समय पर और सूचित निर्णय लेना:

अनुसंधान और ज्ञान साझा करने का एकीकरण अधिकारियों को आपदाओं के दौरान सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। इससे संसाधनों का अधिक कुशल आवंटन, बेहतर जोखिम मूल्यांकन और प्रभावित आबादी के साथ बेहतर संचार होता है।

3. सामुदायिक लचीलापन:

आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों और हितधारकों को शामिल करना उन्हें तैयारियों और प्रतिक्रिया प्रयासों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए सशक्त बनाता है। यह बॉटम-अप दृष्टिकोण सामुदायिक लचीलेपन को बढ़ाता है और समग्र आपदा प्रतिक्रिया ढांचे को मजबूत करता है।

4. अभिनव समाधान:

 बहुविषयक दृष्टिकोण विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को एक साथ लाकर नवीन समाधानों को प्रोत्साहित करता है। इससे प्रौद्योगिकियों, उपकरणों और प्रथाओं का विकास हुआ है जो आपदा पूर्वानुमान, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और आपातकालीन संचार में सुधार करते हैं।

5. समग्र पुनर्प्राप्ति:

अधिनियम का बहु-विषयक दृष्टिकोण पर जोर तत्काल प्रतिक्रिया चरण से आगे तक फैला हुआ है। यह दीर्घकालिक पुनर्प्राप्ति प्रयासों को बढ़ावा देता है जो न केवल भौतिक बुनियादी ढांचे बल्कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को भी संबोधित करता है, जिससे समग्र पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।

10- जलवायु परिवर्तन को परिभाषित कीजिए तथा इसकी अनुकूलन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए

जलवायु परिवर्तन को परिभाषित करना

जलवायु परिवर्तन एक जटिल और बहुआयामी घटना है जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं और मानवीय गतिविधियों दोनों से उत्पन्न होती है। ज्वालामुखी विस्फोट और सौर विकिरण में भिन्नता जैसे प्राकृतिक कारकों ने ऐतिहासिक रूप से जलवायु को प्रभावित किया है। हालाँकि, हाल के दिनों में, जलवायु परिवर्तन का प्रमुख चालक मानव है, जो जीवाश्म ईंधन जलाने, वनों की कटाई और औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसी गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों की रिहाई से उत्पन्न होता है। ये गैसें वायुमंडल में जमा हो जाती हैं, जिससे "ग्रीनहाउस प्रभाव" पैदा होता है जो गर्मी को रोक लेता है और ग्लोबल वार्मिंग की ओर ले जाता है। जलवायु परिवर्तन के परिणामों में बढ़ते तापमान, परिवर्तित वर्षा पैटर्न, समुद्र के स्तर में वृद्धि, अधिक लगातार और तीव्र चरम मौसम की घटनाएं और पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव शामिल हैं।

अनुकूलन प्रक्रिया

अनुकूलन, भेद्यता को कम करने और लचीलेपन को बढ़ाने के लिए जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए समायोजन या तैयारी की प्रक्रिया है। 
इसमें रणनीतियों और कार्रवाइयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है जो स्थानीय समुदायों से लेकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न क्षेत्रों और स्तरों तक फैली हुई है। अनुकूलन प्रक्रिया को कई प्रमुख चरणों में संक्षेपित किया जा सकता है:

1. भेद्यता का आकलन:
अनुकूलन में पहला कदम यह समझना है कि कोई विशेष क्षेत्र या प्रणाली जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति कैसे संवेदनशील है। इसमें जलवायु संबंधी जोखिमों और संभावित खतरों की पहचान करने के साथ-साथ प्रभावित क्षेत्र की संवेदनशीलता और अनुकूली क्षमता का मूल्यांकन करना शामिल है।

2. अनुकूलन विकल्पों की पहचान:

एक बार कमजोरियों का आकलन हो जाने के बाद, हितधारक अनुकूलन विकल्पों की पहचान करने और उन्हें प्राथमिकता देने के लिए काम करते हैं। इन विकल्पों में बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल हो सकता है जो चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर सके, सूखा प्रतिरोधी फसलें विकसित करना, जल संरक्षण उपायों को लागू करना और तटीय सुरक्षा तंत्र को बढ़ाना।

3. योजना और कार्यान्वयन:

पहचाने गए अनुकूलन विकल्पों के आधार पर, विस्तृत योजनाएँ विकसित और कार्यान्वित की जाती हैं। इन योजनाओं में भेद्यता को कम करने के उद्देश्य से नीतियां, विनियम और निवेश शामिल हो सकते हैं। उदाहरणों में बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण को सीमित करने या ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को शुरू करने के लिए ज़ोनिंग नियम शामिल हैं।

4. क्षमता निर्माण और शिक्षा:

प्रभावी अनुकूलन के लिए एक सुविज्ञ और संलग्न जनसंख्या की आवश्यकता होती है। सार्वजनिक जागरूकता अभियान और शैक्षिक कार्यक्रम जैसे क्षमता निर्माण प्रयास, समुदायों को जलवायु जोखिमों और अनुकूली कार्यों के महत्व को समझने में मदद करते हैं।

5. निगरानी और मूल्यांकन:

अनुकूलन उपायों की नियमित निगरानी और मूल्यांकन उनकी प्रभावशीलता का आकलन करने और आवश्यक समायोजन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह पुनरावृत्तीय प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि अनुकूलन रणनीतियाँ बदलती परिस्थितियों के लिए प्रासंगिक और उत्तरदायी बनी रहें।


अनुकूलन में चुनौतियाँ

हालाँकि अनुकूलन में महत्वपूर्ण संभावनाएं हैं, यह चुनौतियों से रहित नहीं है:

1. संसाधनों की कमी: सफल अनुकूलन के लिए पर्याप्त वित्तीय, तकनीकी और मानव संसाधन आवश्यक हैं। कई कमज़ोर क्षेत्र, विशेषकर विकासशील देशों में, आवश्यक संसाधनों को सुरक्षित करने के लिए संघर्ष करते हैं।
2. अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन की विशेषता प्रभावों के समय, परिमाण और क्षेत्रीय वितरण में अनिश्चितता है। यह अनिश्चितता सटीक और प्रभावी अनुकूलन रणनीतियों को विकसित करना चुनौतीपूर्ण बनाती है।
3. परस्पर जुड़े जोखिम: जलवायु परिवर्तन अन्य सामाजिक और पर्यावरणीय जोखिमों के साथ परस्पर क्रिया करता है, जिससे जटिल चुनौतियाँ पैदा होती हैं। इन परस्पर जुड़े जोखिमों से निपटने के लिए एकीकृत और बहु-विषयक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
4. समानता और सामाजिक न्याय: कमजोर समुदायों को अक्सर जलवायु परिवर्तन के असंगत प्रभावों का सामना करना पड़ता है और अनुकूलन संसाधनों तक उनकी पहुंच सीमित हो सकती है। अनुकूलन लाभों का समान वितरण सुनिश्चित करना एक गंभीर चिंता का विषय है।


11- पर्यावरणीय बुनियादी संरचना के विकास पर एक टिप्पणी लिखिए

पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे से तात्पर्य आवश्यक भौतिक और संगठनात्मक प्रणालियों से है जो प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी प्रबंधन और संरक्षण का समर्थन करते हैं, प्रदूषण को कम करते हैं और मानव आबादी और पारिस्थितिकी तंत्र दोनों की भलाई सुनिश्चित करते हैं। इसमें पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार और सतत विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सुविधाओं, प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। जलवायु परिवर्तन, संसाधन की कमी और प्रदूषण जैसी गंभीर वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे का विकास महत्वपूर्ण है। यह नोट पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे के महत्व, इसके प्रमुख घटकों, लाभों और चुनौतियों की पड़ताल करता है।

पर्यावरणीय अवसंरचना के प्रमुख घटक

1. अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली:

प्रदूषण को रोकने और समुदायों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए प्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन आवश्यक है। इसमें ठोस अपशिष्ट, खतरनाक सामग्री और अपशिष्ट जल का संग्रह, परिवहन, उपचार और निपटान शामिल है। उचित अपशिष्ट प्रबंधन संदूषण के जोखिम को कम करता है, जल स्रोतों की रक्षा करता है और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव को कम करता है।

2. जल एवं स्वच्छता सुविधाएं:

स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल और उचित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिए मौलिक है। पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे में जल उपचार संयंत्र, वितरण प्रणाली, सीवेज उपचार संयंत्र और स्वच्छता सुविधाएं शामिल हैं। ये प्रणालियाँ स्वच्छ पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करती हैं, जलजनित बीमारियों को कम करती हैं और स्वच्छता को बढ़ावा देती हैं।

3. नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना:

सौर, पवन और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन, सतत विकास का एक प्रमुख पहलू है। नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और वायु प्रदूषण को कम करती है, जिससे पर्यावरण और आर्थिक लाभ दोनों में योगदान होता है।

4. हरित स्थान और शहरी नियोजन:

शहरी नियोजन में हरे भरे स्थानों, पार्कों और शहरी वनों को शामिल करने से जैव विविधता बढ़ती है, गर्मी के द्वीपों में कमी आती है और वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है। अच्छी तरह से डिज़ाइन किए गए शहरी परिदृश्य निवासियों के शारीरिक और मानसिक कल्याण में योगदान करते हैं और सतत शहरी विकास को बढ़ावा देते हैं।

5. वायु गुणवत्ता प्रबंधन:

पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे में वायु प्रदूषकों की निगरानी और नियंत्रण के उपाय शामिल हैं। इसमें मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिक तंत्र पर वायु प्रदूषण के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिए उत्सर्जन मानकों, वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क और प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकियों की स्थापना शामिल है।

पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे के लाभ

1. पर्यावरण संरक्षण:

  मजबूत पर्यावरणीय बुनियादी ढाँचा प्रदूषण को रोकने, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने में मदद करता है। यह सुरक्षा जैव विविधता, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और ग्रह के समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

2. सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण:

स्वच्छ जल तक पहुंच, स्वच्छता सुविधाएं और उचित अपशिष्ट प्रबंधन सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार में योगदान देता है। प्रदूषण कम होने और वायु गुणवत्ता में सुधार से श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियाँ भी कम होती हैं।

3. सतत विकास:

पर्यावरणीय अवसंरचना संसाधन दक्षता को बढ़ावा देकर, पर्यावरणीय क्षरण को कम करके और नवीकरणीय ऊर्जा और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में हरित नौकरियां पैदा करके सतत आर्थिक विकास का समर्थन करती है।

4. जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन:

नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना और टिकाऊ शहरी नियोजन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन को कम करने में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, हरित स्थान और प्रभावी जल प्रबंधन बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होने में सहायता करते हैं।

5. बढ़ी हुई जीवंतता:

हरित स्थान, कुशल अपशिष्ट प्रबंधन और टिकाऊ परिवहन प्रणालियों के साथ अच्छी तरह से डिजाइन किए गए शहरी वातावरण निवासियों के लिए रहने की क्षमता और जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं।

पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे के विकास में चुनौतियाँ

1. तकनीकी और ज्ञान अंतराल:

  उन्नत पर्यावरणीय प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को लागू करने के लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता हो सकती है। प्रभावी बुनियादी ढांचे के विकास के लिए तकनीकी और ज्ञान अंतर को पाटना महत्वपूर्ण है।

2. शहरीकरण और भूमि उपयोग:

  तेजी से शहरीकरण और अनुचित भूमि उपयोग मौजूदा पर्यावरणीय बुनियादी ढांचे पर दबाव डाल सकता है और पर्यावरणीय गिरावट का कारण बन सकता है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए एकीकृत शहरी नियोजन की आवश्यकता है।

3. सामुदायिक सहभागिता:

पर्यावरणीय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की योजना, कार्यान्वयन और रखरखाव में स्थानीय समुदायों को शामिल करना उनकी सफलता और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।

12- समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन की व्याख्या कीजिए तथा इसके पारंपारिक दृष्टिकोण के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए

समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (सीबीडीएम) एक सक्रिय और भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण है जो स्थानीय समुदायों को आपदाओं की तैयारी, प्रतिक्रिया देने और उनसे उबरने में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए सशक्त बनाता है। पारंपरिक टॉप-डाउन दृष्टिकोण के विपरीत, जिसका नेतृत्व अक्सर सरकारी एजेंसियों और बाहरी संगठनों द्वारा किया जाता है, सीबीडीएम मानता है कि समुदायों के पास मूल्यवान ज्ञान, संसाधन और क्षमताएं हैं जो प्रभावी आपदा प्रबंधन में योगदान कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण जमीनी स्तर पर सहयोग, स्वामित्व और लचीलेपन को बढ़ावा देता है। इस लेख में, हम समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन और पारंपरिक दृष्टिकोण के बीच सिद्धांतों और प्रमुख अंतरों का पता लगाते हैं।

समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन के सिद्धांत

1. स्थानीय स्वामित्व:

सीबीडीएम स्थानीय समुदायों को आपदा प्रबंधन में सबसे आगे रखता है। यह स्वीकार करता है कि समुदाय के सदस्यों को अपने पर्यावरण, कमजोरियों और क्षमताओं की गहरी समझ है, जो उन्हें जोखिमों की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिए सर्वोत्तम रूप से सुसज्जित बनाती है।

2. भागीदारी और सशक्तिकरण:

सीबीडीएम समुदायों को आपदा तैयारी, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति से संबंधित निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से शामिल होने के लिए सशक्त बनाता है। 
यह समावेशी भागीदारी को प्रोत्साहित करता है और सुनिश्चित करता है कि हाशिए पर रहने वाले समूहों को रणनीतियों को आकार देने में आवाज मिले।

3. सांस्कृतिक संदर्भ:

सीबीडीएम प्रत्येक समुदाय के सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भ का सम्मान करता है और उसे शामिल करता है। यह मानता है कि आपदा प्रबंधन समाधान सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील होने चाहिए और समुदाय की विशिष्ट आवश्यकताओं और मान्यताओं के अनुरूप होने चाहिए।

4. स्थानीय ज्ञान और संसाधन:

सीबीडीएम एक समुदाय के भीतर उपलब्ध स्थानीय ज्ञान और संसाधनों का लाभ उठाता है। यह पारंपरिक प्रथाओं, स्वदेशी ज्ञान और कौशल को साझा करने को प्रोत्साहित करता है जो आपदा लचीलेपन में योगदान कर सकते हैं।

5. सहयोग और नेटवर्किंग:

सीबीडीएम समुदायों, स्थानीय संगठनों, सरकारी एजेंसियों और गैर सरकारी संगठनों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है। 
यह ऐसे नेटवर्क की स्थापना को प्रोत्साहित करता है जो सूचना साझा करने, संसाधन जुटाने और सामूहिक कार्रवाई की सुविधा प्रदान करता है।


समुदाय- आधारित आपदा प्रबंधन और पारंपरिक दृष्टिकोण के बीच अंतर

1. निर्णय लेने वाला प्राधिकारी:

सीबीडीएम: सीबीडीएम में स्थानीय समुदायों के पास महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार है। वे जोखिमों की पहचान करने, योजनाएँ बनाने और रणनीतियाँ लागू करने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
पारंपरिक दृष्टिकोण: निर्णय लेना अक्सर सरकारी एजेंसियों और बाहरी संगठनों के हाथों में केंद्रीकृत होता है, जिसमें स्थानीय समुदायों की सीमित भागीदारी होती है।

2.स्थानीय क्षमताओं पर ध्यान दें:

सीबीडीएम: यह दृष्टिकोण लचीलापन बनाने और आपदाओं पर प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करने के लिए समुदाय के भीतर मौजूदा क्षमताओं, कौशल और संसाधनों का लाभ उठाता है।
पारंपरिक दृष्टिकोण: बाहरी संसाधनों और विशेषज्ञता पर जोर दिया जाता है, अक्सर समुदाय के संभावित योगदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

3. अनुकूलित समाधान:

सीबीडीएम: आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ संदर्भ-विशिष्ट हैं और समुदाय की अद्वितीय सांस्कृतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय विशेषताओं पर विचार करती हैं।
पारंपरिक दृष्टिकोण: समुदाय की विशिष्ट आवश्यकताओं और कमजोरियों पर विचार किए बिना एक आकार-सभी के लिए उपयुक्त दृष्टिकोण लागू किया जा सकता है।

4.सामुदायिक जुड़ाव:

सीबीडीएम: समुदाय आपदा प्रबंधन के सभी चरणों में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं - जोखिम मूल्यांकन और तैयारियों से लेकर प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति तक।
पारंपरिक दृष्टिकोण: समुदायों की आपात स्थिति के दौरान निर्देश या सहायता प्राप्त करने से परे सीमित भागीदारी हो सकती है।

5.दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य:

सीबीडीएम: सीबीडीएम सतत विकास और आपदा तैयारियों और शमन में निरंतर सुधार पर ध्यान केंद्रित करते हुए दीर्घकालिक लचीलापन-निर्माण पर जोर देता है।
पारंपरिक दृष्टिकोण: पारंपरिक दृष्टिकोण दीर्घकालिक लचीलेपन पर कम जोर देने के साथ अल्पकालिक प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति को प्राथमिकता दे सकता है।

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( Eklavya Ignou ): BPAG-171- आपदा प्रबंधन ( Aapda Prabandhan ) || Disaster Management in hindi- Most important question answer
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